Classical Language: शास्त्रीय भाषा
भारत के संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, शास्त्रीय भाषाएँ ऐसी भाषाएँ हैं जिनका समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक इतिहास हो, और जिनकी सांस्कृतिक विरासत, महत्वपूर्ण साहित्यिक उत्पादन का इतिहास, व्याकरण और नियमों की एक औपचारिक प्रणाली होती है। साथ ही उनकी उत्पत्ति किसी अन्य भाषा से ना हुई हो।
भारत में शास्त्रीय भाषाएँ कितनी हैं?
भारत सरकार आधिकारिक तौर पर विशिष्ट मानदंडों के आधार पर कुछ भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता देती है। वर्तमान में संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, भारत में छह शास्त्रीय भाषाएँ हैं: संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया। उड़िया भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त सबसे नवीनतम शास्त्रीय भाषा है। इसे संस्कृति मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 में शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी। जबकि तमिल शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता पाने वाली पहली शास्त्रीय भाषा है। इसे वर्ष 2004 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था।
संस्कृत: संस्कृत भारत की सबसे पुरानी शास्त्रीय भाषाओं में से एक है और इसे कई भारतीय भाषाओं की जननी माना जाता है। इसमें धार्मिक ग्रंथों, महाकाव्य कविताओं और दार्शनिक कार्यों सहित साहित्य का एक विशाल भंडार है। देवनागरी लिपि वास्तव में संस्कृत के लिये ही बनी है, इसलिये इसमें हर एक चिह्न के लिये एक और केवल एक ही ध्वनि है। यह भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है। भारत सरकार ने 2005 में इस भाषा को ‘भारत की शास्त्रीय भाषा’ के रूप में सूचीबद्ध किया था। संस्कृत अब मूल भाषा के रूप में नहीं बोली जाती है, लेकिन अनुष्ठानों, साहित्य और शैक्षणिक संदर्भों में इसका अध्ययन और उपयोग जारी है।
तमिल: तमिल भारत की शास्त्रीय भाषाओं में से एक है जिसकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा 2,000 साल से अधिक पुरानी है। यह अपने काव्य, साहित्य और प्राचीन संगम काव्य के लिए जाना जाता है। यह द्राविड़ भाषा परिवार की प्राचीनतम भाषा मानी जाती है। विश्व के विद्वानों ने संस्कृत, ग्रीक, लैटिन आदि भाषाओं के समान तमिल को भी अति प्राचीन तथा सम्पन्न भाषा माना है। तमिल अभी भी भारतीय राज्य तमिलनाडु और कुछ अन्य क्षेत्रों में एक मूल भाषा के रूप में बोली जाती है। सर्वप्रथम तमिल भाषा को ही शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था। तमिल भाषा को वर्ष 2004 में भारत के प्रथम शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई।
कन्नड़: कन्नड़ एक अन्य शास्त्रीय भाषा है जो मुख्य रूप से कर्नाटक राज्य में बोली जाती है। इसमें एक महत्वपूर्ण साहित्यिक विरासत है, जिसमें शास्त्रीय कविता, दर्शन पर लेखन और ऐतिहासिक कार्य शामिल हैं। यह कर्नाटक की राजभाषा है। यह द्रविड़ भाषा-परिवार में आती है पर इसमें संस्कृत के भी बहुत से शब्द हैं। भारत सरकार ने 2008 में तेलुगु के साथ इस भाषा को भी ‘भारत की शास्त्रीय भाषा’ के रूप में सूचीबद्ध किया था।
तेलुगु: आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य में बोली जाने वाली तेलुगु एक शास्त्रीय भाषा है जिसका साहित्यिक उत्पादन का एक हजार साल से अधिक का इतिहास है। इसमें शास्त्रीय कविता, धार्मिक ग्रंथ और ऐतिहासिक रचनाएँ हैं। यह द्रविड़ भाषा-परिवार के अन्तर्गत आती है। यह भाषा आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के अलावा तमिलनाडु, कर्णाटक, ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों में भी बोली जाती है। भारत सरकार ने 2008 में इस भाषा को ‘भारत की शास्त्रीय भाषा’ के रूप में सूचीबद्ध किया था।
मलयालम: मलयालम भारतीय राज्य केरल की शास्त्रीय भाषा है। इसमें साहित्य की एक समृद्ध परंपरा है, विशेषकर कविता और धार्मिक ग्रंथों के रूप में। मलयालम अभी भी केरल में मूल भाषा के रूप में बोली जाती है। यह द्रविड़ भाषा-परिवार के अन्तर्गत आती है। भारत सरकार ने 2013 में इस भाषा को ‘भारत की शास्त्रीय भाषा’ के रूप में सूचीबद्ध किया था।
उड़िया: उड़िया ओडिशा राज्य की शास्त्रीय भाषा है। इसका साहित्य का एक लंबा इतिहास है, जिसमें कविता, गद्य और धार्मिक ग्रंथ शामिल हैं। यह आधुनिक भारत-आर्य भाषा परिवार के अन्तर्गत आती है। इसकी लिपी का विकास भी नागरी लिपि के समान ही ब्राह्मी लिपि से हुआ है। भारत सरकार ने 2014 में इस भाषा को ‘भारत की शास्त्रीय भाषा’ के रूप में सूचीबद्ध किया था। यह भारत सरकर द्वारा घोषित सबसे नवीनतम शास्त्रीय भाषा है।
इन शास्त्रीय भाषाओं ने भारत की सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए उनका अध्ययन, उत्सव और संरक्षण जारी है। कृपया ध्यान दें कि भाषाओं की स्थिति समय के साथ बदल सकती है, और यह संभव है कि सितंबर 2021 में मेरे आखिरी अपडेट के बाद से भारत में शास्त्रीय भाषाओं की मान्यता से संबंधित विकास या परिवर्तन हुए हों।
शास्त्रीय भाषा के वर्गीकरण का आधार:
फरवरी 2014 में संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) द्वारा किसी भाषा को ‘शास्त्रीय’ घोषित करने के लिये निम्नलिखित दिशा निर्देश जारी किये-
- इसके प्रारंभिक ग्रंथों का इतिहास 1500-2000 वर्ष से अधिक पुराना हो
- प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक हिस्सा हो जिसे बोलने वाले लोगों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता हो।
- साहित्यिक परंपरा में मौलिकता हो अर्थात् उसकी उत्पत्ति किसी अन्य भाषा से ना हुई हो।
- शास्त्रीय भाषा और साहित्य, आधुनिक भाषा और साहित्य से भिन्न हैं इसलिये इसके बाद के रूपों के बीच असमानता भी हो सकती है।
शास्त्रीय भाषा घोषित होने के लाभ
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार, किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में अधिसूचित करने से प्राप्त होने वाले लाभ इस प्रकार हैं-
- भारतीय शास्त्रीय भाषाओं में प्रख्यात विद्वानों के लिये दो प्रमुख वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों का वितरण।
- शास्त्रीय भाषाओं में अध्ययन के लिये उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना।
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुरोध करता है कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के लिये पेशेवर अध्यक्षों के कुछ पदों की घोषणा करें।
- वर्ष 2019 में संस्कृति मंत्रालय ने उन संस्थानों को सूचीबद्ध किया था जो शास्त्रीय भाषाओं के लिये समर्पित हैं।
- संस्कृत के लिये: राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली; महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन; राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरुपति; और श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली।
- तेलुगु और कन्नड़ के लिये: मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 2011 में स्थापित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL) में संबंधित भाषाओं में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र।
- तमिल के लिये: सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ क्लासिकल तमिल (CICT), चेन्नई।
- यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) इन भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान परियोजनाएँ भी संचालित करता है।
- UGC ने वर्ष 2016-17 के दौरान ₹56।74 लाख और वर्ष 2017-18 के दौरान ₹95।67 लाख का फंड जारी किया था।
- शास्त्रीय भाषाओं को जानने और अपनाने से विश्व स्तर पर भाषा को पहचान ओर सम्मान मिलेगा।
- वैश्विक स्तर पर संस्कृति का प्रसार होगा जिससे शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
- शास्त्रीय भाषाओं की जानकारी से लोग अपनी संस्कृति को और बेहतर तरीके से समझ सकेंगे तथा प्राचीन संस्कृति और साहित्य से और बेहतर तरीके से जुड़ सकेंगे।
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