अंतरिक्ष अन्वेषण में प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। यही तकनीक उपग्रहों और अन्य पेलोड्स को पृथ्वी की कक्षा से बाहर भेजने में मदद करती है। प्रक्षेपण यान की कार्यप्रणाली बहुत जटिल होती है, जिसमें विभिन्न चरणों और तकनीकों का समन्वय किया जाता है। ईंधन का प्रकार, थ्रस्ट निर्माण, और चरणबद्ध विभाजन जैसी प्रक्रियाएँ इसे सफल बनाती हैं।
‘प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी’ जैसे विषय को एक छोटे से आर्टिकल में पुरी तरह से समझ पाना संभव नहीं है, फिर भी हम इस लेख में प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के बारे में कुछ जानने की कोशिश करेंगे. इस लेख में हम जानेंगे कि प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी कैसे काम करती है और इसके प्रमुख घटक कौन से हैं।
प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी- सामान्य परिचय
प्रक्षेपण यान का मुख्य उद्देश्य पेलोड, जैसे कि उपग्रह, अंतरिक्ष यान, या अन्य उपकरणों को अंतरिक्ष में सुरक्षित रूप से पहुँचाना होता है। इसके लिए यह यान कई तरह की जटिल तकनीकों और ईंधनों का इस्तेमाल करता है। प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के बिना कोई भी अंतरिक्ष मिशन सफल नहीं हो सकता।
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO इस क्षेत्र में अग्रणी हैं, जो सस्ती और सटीक प्रक्षेपण सेवाएँ प्रदान करती हैं, इससे दुनिया भर के उन देशों को भी अपने अंतरिक्ष उपग्रह भेजने में मदद मिलती है, जिनके पास खुद की प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी नहीं है और जो इसके लिए पश्चिमी देशों की महँगी प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी की सेवा नहीं ले सकते.
प्रक्षेपण यान के प्रमुख घटक
प्रक्षेपण यान कई प्रमुख घटकों से मिलकर बनता है। आइए इनके बारे में जानें:
तरल ईंधन और ठोस ईंधन प्रौद्योगिकी
प्रक्षेपण यान में दो प्रकार के ईंधनों का उपयोग किया जाता है— तरल और ठोस। तरल ईंधन वाले इंजन को नियंत्रित करना आसान होता है और ये ज्यादा ऊर्जा प्रदान करते हैं, जबकि ठोस ईंधन वाले इंजन को एक बार प्रज्वलित करने के बाद बंद नहीं किया जा सकता।
पेलोड और ऑर्बिटर का महत्व
पेलोड वह होता है जिसे प्रक्षेपण यान अंतरिक्ष में ले जाता है, यह मिशन के विशिष्ट उद्देश्यों को पूरा करता है। उदाहरण के लिए, उपग्रह, अंतरिक्ष यान, अंतरिक्ष स्टेशन, या वैज्ञानिक उपकरण पेलोड हो सकते हैं।। ऑर्बिटर वह यंत्र होता है जो उपग्रह को उसकी निर्धारित कक्षा में स्थापित करता है। प्रक्षेपण यान की पूरी योजना इस पेलोड की सुरक्षा और सटीकता पर निर्भर करती है।
भारत कितने प्रकार के प्रक्षेपण यान का प्रयोग करता है
वैसे तो प्रक्षेपण यान के कई प्रकार हो सकते हैं परन्तु भारत में अभी 2 प्रकार के प्रक्षेपण यान के प्रयोग किये जा रहे हैं- PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) और GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle)
PSLV का उपयोग कम वजन वाले उपग्रहों को पृथ्वी के ध्रुवीय कक्षा में भेजने के लिए किया जाता है, जबकि GSLV भारी उपग्रहों को जियोसिंक्रोनस कक्षा में भेजता है। अभी की तकनीक री-यूजेबल नहीं है पर इसरो भविष्य में री-यूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) पर काम कर रहा है, जिससे प्रक्षेपण की लागत और भी कम हो सकेगी। यह तकनीक स्पेसएक्स की तरह पुन: उपयोग किए जा सकने वाले यानों के विकास की दिशा में एक बड़ा कदम है।
प्रक्षेपण यान की कार्यप्रणाली
प्रक्षेपण यान आमतौर पर कई चरणों (Stages) में विभाजित होता है। पहला चरण प्रक्षेपण के दौरान यान को ऊँचाई तक पहुँचाता है। फिर इस चरण को अलग कर दिया जाता है और दूसरा चरण यान को और ऊपर ले जाता है। इस चरणबद्ध विभाजन से ईंधन की खपत कम होती है और प्रक्षेपण अधिक सटीक होता है।
प्रक्षेपण यान को आवश्यक थ्रस्ट (Force) प्रदान करने के लिए ईंधन और ऑक्सीडाइज़र का मिश्रण किया जाता है। यह मिश्रण विस्फोटक ऊर्जा उत्पन्न करता है, जो यान को धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बाहर खींचने में मदद करता है।
अंतरिक्ष तकनीक के साथ-साथ प्रक्षेपण यानों में भी आधुनिक तकनीकें जुड़ रही हैं। इनमें सबसे प्रमुख है स्वचालित नेविगेशन प्रणाली और उन्नत सेंसर तकनीक, जो यान की दिशा और स्थिति को सटीकता से नियंत्रित करती हैं। आधुनिक प्रक्षेपण यानों में GPS आधारित नेविगेशन सिस्टम और सटीक मार्गदर्शन के लिए उच्च स्तरीय सेंसर लगे होते हैं, जो प्रक्षेपण के दौरान यान को नियंत्रित करते हैं और उसकी दिशा निर्धारित करते हैं।
आने वाले भविष्य प्रक्षेपण यान का
प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी भविष्य की जरुरत है, क्योंकि जैसे जैसे तकनीक का विकास होगा और स्पेस satellite की launching में क्रांति आएगी, दुनिया में सस्ती और सटीक प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी की आवश्यकता और मांग भी बढ़ेगी। भारत और अन्य कई विकासशील देशों में नई और उन्नत तकनीकों का विकास हो रहा है। भारत का लक्ष्य है कि वह प्रक्षेपण यान की लागत को और कम करे और इसे और अधिक सुलभ बनाए। RLV जैसी तकनीकें इस दिशा में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं।
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