महिला आरक्षण बिल 2023: महिला आरक्षण विधेयक या नारी शक्ति वंदन अधिनियम बीते गुरुवार को राज्यसभा से सर्वसम्मति से पारित हो गया। राज्यसभा के सभी 214 सांसदों ने महिला आरक्षण विधेयक को पूर्ण सहमती देकर इसे पारित कर दिया। इससे पहले बुधवार को लोकसभा से भी महिला आरक्षण बिल पारित हो गया था। लोकसभा में इसके विरोध में केवल 2 वोट पड़े थे जबकि 454 सांसदों ने विधेयक का समर्थन किया था। इस विधेयक के कानून बनने के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएँगी।
इस तरह से देश की नई संसद से पहला और ऐतिहासिक विधेयक दोनों सदनों से पूर्ण बहुमत के साथ पारित हो गया।
महिला आरक्षण बिल 2023 क्या है
संसद में पहली बार पेश किये जाने के तकरीबन तीन दशक बाद महिला आरक्षण विधेयक का लोकसभा में पारित होना स्वागतयोग्य कदम है, जो महिलाओं की राह में खड़ी एक राजनीतिक दीवार को आखिरकार ढहा सकता है। लोकसभा में महिला सांसद कुल संख्या का केवल लगभग 15 फीसदी हैं, जो राजनीतिक प्रतिनिधित्व की दृष्टि से लैंगिक असमानता की स्पष्ट और परेशान करनेवाली तस्वीर पेश करता है।
128वां संविधान संशोधन विधेयक, या नारी शक्ति वंदन अधिनियम का संसद से पारित होना लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिए एक-तिहाई अर्थात ३३% सीटें आरक्षित कर इस तस्वीर को बदलने की दिशा में एक कदम है। यह आरक्षण 15 साल के लिए है, जिसे आगे बढ़ाया जा सकता है। यह विधेयक यह भी प्रावधान करता है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों में से लगभग एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए अलग रखी जायेंगी।
इस समय लोकसभा की 131 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं। महिला आरक्षण विधेयक के क़ानून बन जाने के बाद इनमें से 43 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इन 43 सीटों को सदन में महिलाओं के लिए आरक्षित कुल सीटों के एक हिस्से के रूप में गिना जाएगा।
इसका मतलब यह हुआ कि महिलाओं के लिए आरक्षित 181 सीटों में से 138 ऐसी होंगी जिन पर किसी भी जाति की महिला को उम्मीदवार बनाया जा सकेगा।
हालांकि यह सम्पूर्ण गणना लोकसभा में सीटों की वर्तमान संख्या पर की गई है। परिसीमन के बाद इसमें बदलाव आने की संभावना है।
महिला आरक्षण बिल की आवश्यकता क्यों पड़ी
देश के 95 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से करीब आधी महिलाएं हैं, लेकिन संसद में सिर्फ 15 प्रतिशत और राज्य विधानसभाओं में उनकी हिस्सेदारी 10 प्रतिशत है।
यह सत्य है कि स्थानीय निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केन्द्रीय स्तर से कहीं बेहतर है। कई राज्यों में तो पंचायतीराज संस्थाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 50 फीसदी के काफी ऊपर है। इस बात से सबक लिया जाना चाहिए कि कैसे महिलाओं ने जमीनी स्तर पर हर तरह की बाधाओं जैसे घर में पितृसत्तात्मक मानसिकता से लेकर पद संबंधी कर्तव्य निभाने के दौरान गंभीरता से नहीं लिये जाने तक, को तोड़ा है, और फर्क पैदा किया है। महिलाएं इन सबके अलावा कई दूसरे मोर्चों पर भी संघर्ष करती हैं : स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा तक उनकी हर जगह समान पहुंच नहीं है। उनके लिए सुरक्षित जगहों तक का अभाव है।
महिलाएं कार्यबल से बाहर भी हो रही हैं – भारत में श्रमबल में महिला भागीदारी 24 फीसदी है, जो G-20 देशों के बीच सबसे कम है। बिल्कुल शुरू से महिलाओं को मताधिकार देनेवाले देश भारत को महिलाओं के लिए बेहतर राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। विकास और प्रमुख क्षेत्रों में बदलाव लाने के लिए, यह जरूरी है कि महिलाओं को भागीदारी का उचित मौका मिले।
महिला आरक्षण बिल 2029 तक होगा लागू
महिला आरक्षण बिल भले ही 2024 के आम चुनावों से पहले संसद से पारित हो गया हो पर इस पर कानून बनने और पूरी तरह से लागू होने में अभी लम्बा वक्त लगने वाला है। क्योकि सरकार ने इसके क्रियान्वयन को परिसीमन और जनगणना से जोड़ दिया है, यहीं पर परेशानी है। हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसके क्रियान्वयन को परिसीमन से जोड़ा जा रहा है, क्योंकि महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित रखने के सिद्धांत का निर्वाचन क्षेत्रों की इलाकाई सीमाओं या हरेक राज्य में विधानसभा या लोकसभा क्षेत्रों की संख्या से कोई लेना-देना नहीं है।
इस तरह से 2024 के आम चुनाव में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण उपलब्ध नहीं होगा। ये अगले आम चुनाव 2029 तक ही लागू हो सकेगा।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा भी है कि कुछ इस तरह की चर्चा हो रही है कि इस बिल को अभी से लागू कर दिया जाए। उन्होंने कहा, “मैं इसे स्पष्ट करना चाहता हूं कि कुछ संवैधानिक व्यवस्थाएं होती हैं, कुछ संवैधानिक कार्य करने का तरीका होता है हमें महिलाओं को आरक्षण देना है लेकिन किस सीट पर आरक्षण दिया जाए, किस पर न दिया जाए इसका फैसला सरकार नहीं कर सकती है बल्कि अर्ध न्यायिक निकाय करती है। इसके लिए दो चीज महत्वपूर्ण है – जनगणना और परिसीमन।
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