सबसे नई शास्त्रीय भाषा– भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ईरान दौरे पर मीडिया से बातचीत में घोषणा की है कि देश में नई शिक्षा नीति 2020 के तहत फारसी को देश की 9वीं शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल किया जायेगा. फारसी के अलावा प्राकृत और पाली भाषा को भी शास्त्रीय भाषा के रूप में शमिल किया जायेगा. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने देश में फारसी के इतिहास को समृद्ध और उसकी समझ को जनमानस तक पहुँचाने के उद्देश्य से इसे शास्त्रीय भाषा का रूप देने की घोषणा की है.
सबसे नई शास्त्रीय भाषा- प्राकृत, पाली और फारसी
विदेश मंत्री एस जयशंकर हाल ही में ईरान के दौरे पर गए थे. इस दौरान अपने ईरानी समकक्ष एच अमीर-अब्दुल्लाहियन के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान विदेश मंत्री ने भारत में फारसी के इतिहास पर चर्चा करते हुए बताया कि फारसी भाषा का देश में ऐतिहासिक और साहित्यिक रूप से काफी समृद्ध रही है.
जयशंकर ने बताया कि केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि नई शिक्षा नीति 2020 के तहत प्राकृत, पाली और फारसी को शास्त्रीय भाषा की मान्यता दी जाएगी. इन भाषाओँ को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता देने से भारतीय शैक्षिक ढांचे के भीतर इन भाषाओँ की समृद्ध विरासत की समझ और सराहना को बढ़ावा मिलेगा।
इस प्रकार देश को 7वीं और 8वीं शास्त्रीय भाषा के रूप में प्राकृत और पाली तथा 9वीं शास्त्रीय भाषा के रूप में फारसी मिल जाएगी.
प्राकृत और पाली भाषा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक रूप से जैन और बौद्ध काल में काफी महत्त्वपूर्ण रही है. जैन धर्म और बौद्ध धर्म के अनेक ग्रन्थ प्राकृत और पाली भाषा में लिखे गए हैं. साथ ही महावीर स्वामी ने जहाँ अपने उपदेशों के लिए प्राकृत भाषा का प्रयोग किया था वहीँ महात्मा बुद्ध ने पाली भाषा में जन सामान्य को उपदेश दिए थे.
भारत की प्रथम शास्त्रीय भाषा
भारत में प्राचीन भाषाओँ के समृद्ध इतिहास को लोगों तक पहुँचाने और प्राचीन भाषाओँ के अस्तित्व को बचाए रखने के उद्देश्य से प्राचीन समृद्ध भाषाओँ को शास्त्रीय भाषा की मान्यता देने की शुरुआत वर्ष 2004 में हुई थी. उस समय पहली बार तमिल भाषा को भारत की प्रथम शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी.
इसके बाद वर्ष 2005 में संस्कृत को दूसरी शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिली थी. जबकि आखिरी बार वर्ष 2014 में किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा की मान्यता दी गई थी. तब ओड़िया को भारत की 6वीं शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिली थी.इसके अलावा कन्नड़ और तेलुगु को वर्ष 2008 में और मलयालम को वर्ष 2013 में भारत की शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिली थी.
शास्त्रीय भाषा घोषित करने के लिए आवश्यक मानदंड
संस्कृति मंत्रालय किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने के लिये जिन मानदंडों का प्रयोग करता है वो निम्नलिखित हैं-
- इसके प्रारंभिक ग्रंथों का इतिहास 1500-2000 वर्ष से अधिक पुराना हो
- प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक हिस्सा हो जिसे बोलने वाले लोगों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता हो।
- शास्त्रीय भाषा और साहित्य, आधुनिक भाषा और साहित्य से भिन्न हैं इसलिये इसके बाद के रूपों के बीच असमानता भी हो सकती है।
- साहित्यिक परंपरा में मौलिकता हो अर्थात् उसकी उत्पत्ति किसी अन्य भाषा से ना हुई हो।