शस्त्र अर्थव्यवस्था– 19वीं सदी की सबसे भयानक महामंदी की शुरुआत वर्ष 1929 में हुई थी पर इसका प्रभाव लगभग द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होने तक यानि 1939-40 तक रहा. लगभग 1 दशक तक कायम रही 1929 की महामंदी ने दुनिया को व्यापार के नए रास्ते भी दिए, जिसमे से सबसे महत्त्वपूर्ण था हथियारों का व्यापार. यही वो क्षण था जब दुनिया ने शस्त्र अर्थव्यवस्था को पहचाना. आइये इस लेख में आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कि शस्त्र अर्थव्यवस्था क्या होती है?
शस्त्र अर्थव्यवस्था
हम जानते हैं कि किसी राष्ट्र द्वारा अपने नागरिकों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए अपने उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग करते हुए मुद्रा के नियोजन और अर्जन को केंद्र में रखकर बनाई गई व्यवस्था को उस राष्ट्र की अर्थव्यवस्था कहते हैं और किसी राष्ट्र की अर्थव्यस्था में जिस क्षेत्र का मुख्य भाग होता है उस राष्ट्र की अर्थव्यवस्था उसी क्षेत्र के नाम से जानी जाती है.
जैसे भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान अधिक है इसलिए भारत की अर्थव्यवस्था भी कुछ हद तक कृषि अर्थव्यवस्था है. हालांकि भारत की अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था के नाम से जानी जाती है
शस्त्र अर्थव्यवस्था भी उसी तरह से अर्थव्यवस्था का एक प्रकार है. जो अर्थव्यवस्था काफी हद तक मुद्रा का अर्जन अपने शस्त्र व्यापार से करती है, उसे शस्त्र अर्थव्यवस्था कहते हैं. अमेरिका और यूरोप के देशों में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से शस्त्र व्यापार की होड़ ने दुनिया को एक नई प्रकार की अर्थव्यवस्था दी है.
1929 की महामंदी के बाद दुनिया में शस्त्र अर्थव्यवस्था की शुरुआत कैसे हुई थी
1929 की महामंदी के बाद शुरू हुए द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका जैसे देशों को अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए एक बड़ा फंडा हाथ लग गया। अमेरिका सहित विभिन्न देशों में सैन्य प्रसार-प्रचार से न केवल नौकरियों के द्वार खुले, बल्कि हथियारों के उत्पादन से अर्थव्यवस्थाओं में भी जान आ गई। इससे 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के बाद महामंदी से निकलने में उन्हें सहायता मिली।
विश्व युद्ध आरंभ होने के बाद दुनिया भर में हथियारों की डिमांड इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उन्हें उस देश द्वारा खुद आवश्यक समय के भीतर पूरा कर पाना असंभव हो गया. साथ ही युद्ध के बदलते स्वरुप और खोज होती नई नई तकनीकों ने दुनिया भर के देशो को आत्मरक्षा के लिए नए नए प्रकार के हथियार खरीदने को मजबूर कर दिया. उस समय जितनी टेक्नोलॉजी और संसाधन अमेरिका के पास थी उतनी किसी भी अन्य देश के पास नहीं थे. इसलिए नए नए हथियारों की खोज और परिक्षण अमेरिका में तेजी से होने लगी.
अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध में नए नए हथियारों का प्रयोग करके दुनिया को उन्हें खरीदने के लिए आकर्षित किया. द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल देशों को अपने दुश्मनों से लड़ने के लिए उन्नत हथियारों की आवश्यकता थी, पर समय और तकनीक के भाव के कारण वे इन हथियारों को बना नहीं सकते थे. इसलिए वे उन्हें अमेरिका से ऊँचे दामों पर खरीदने को विवश हुए. इसने अमेरिका को हथियारों की बिक्री से भारी मात्रा में मुनाफा कमाने का अच्छा अवसर प्रदान किया.
बाद में अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने इसे ही अपना खेवनहार बना लिया। आज हथियारों की बिक्री से इन देशों को भारी मुनाफा होता है।
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