वीर बाल दिवस एक ऐसा दिन जिसे हमारे इतिहासकारों ने अपने इतिहास लेखन में कोई जगह नहीं दी, जिसके बारे में देश के अधिकतर लोगों को जानकारी तक नहीं है कि आज से सैकड़ों सालों पूर्व कभी मुग़लों के सामने न झुककर अपने धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोविन्द सिंह जी के साहिबजादों फ़तेह सिंह और जोरावर सिंह को मुग़ल सेनापति वजीर खान ने दीवार में जिन्दा चुनवा दिया था, लेकिन उन वीर साहिबजादों ने उफ़ तक नहीं की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीर बाल दिवस 2023 के अवसर पर 26 दिसम्बर को नई दिल्ली में भारत मंडपम में आयोजित वीर बाल दिवस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वीर बाल दिवस भारतीयता की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने का प्रतीक है। उन्होंने कहा आज देश वीर साहिबजादों के अमर बलिदान को याद कर रहा है और उनसे प्रेरणा ले रहा है।
इसलिए वीर बाल दिवस के अवसर पर हम जानेंगे कि वीर बाल दिवस की शुरुआत कब हुई थी और पहली बार वीर बाल दिवस कब मनाया गया था. आखिर भारत के इतिहासकारों ने वीर साहिबजादों के बलिदान को क्यों भुला दिया? साथ ही ये भी जानेंगे कि वीर बाल दिवस 2023 के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्या कहा?
वीर बाल दिवस की शुरुआत कब हुई थी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से गुरु गोविन्द सिंह के साहिबजादों के बलिदान को देश में पहली बार वर्ष 2022 में पहचान मिली थी. उस समय 9 जनवरी, 2022 को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के दिन प्रधानमंत्री ने यह घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को श्री गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों- साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी की शहादत की स्मृति में ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।
इस तरह से पहली बार वीर बाल दिवस 26 दिसम्बर 2022 को मनाया गया था.
सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह न सिर्फ एक संत एवं दार्शनिक, बल्कि एक कुशल योद्धा भी थे। उन्होंने बर्बर मुगल बादशाह औरंगजेब के विरुद्ध कई युद्ध लड़े। उनके पिता गुरु तेग बहादुर की औरंगजेब ने ही हत्या करवाई थी। इस कारण मात्र 9 वर्ष की उम्र में गोविंद सिंह को गुरु की पदवी सँभालनी पड़ी थी।
इतिहासकारों ने वीर साहिबजादों के बलिदान को क्यों भुला दिया
आज की आधुनिक शिक्षा में हम जो भी पढाई कर रहे हैं वो सब विदेशियों और गुलामी के दौर में लिखा गया इतिहास है, जिसमे निःसंदेह तत्कालीन सत्ता के अनुकूल और भारत के खिलाफ ही तथ्य लिखे होंगे. साथ ही उनमे भारतीय इतिहास का वास्तविक चित्रण मिल जाये, ये संभव ही नहीं है.
आज के दौर में विडम्बना ये है कि आजादी मिलने के बाद भी हम उन्ही का लिखा इतिहास ज्यादा प्रमाणिक मानतें हैं और तमाम साक्ष्य होने के बाद भी उन्हें कल्पना मात्र कह कर नजरंदाज कर देते हैं.
गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगजेब से लड़े थे अनेकों युद्ध
गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर,1666 को पटना, बिहार में हुआ था। उन्हें सिख धर्म में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये जाना जाता है, जिसमें बालों को ढँकने के लिये पगड़ी भी शामिल है। उन्होंने खालसा या पाँच ‘क’ के सिद्धांत की भी स्थापना की थी। गुरु गोविंद सिंह का मुकाबला करने के लिए औरंगजेब ने उनके पीछे अपने सेनापति वजीर खान को लगाया था। उसे सरहिंद का सूबेदार बना कर सिखों का दमन करने के लिए भेजा गया था।
गुरु गोविंद सिंह को उसके साथ कई युद्ध लड़ने पड़े। सतलुज से लेकर यमुना नदी के बीच के पूरे क्षेत्र पर वजीर खान का ही शासन चलता था। उसने गुरु गोविंद सिंह के 5 वर्षीय और 8 वर्षीय बेटों फ़तेह सिंह और जोरावर सिंह को ज़िंदा पकड़ लिया था। इस्लाम न अपनाने पर उसने दोनों को ही दीवार में ज़िंदा चुनवा दिया।
वीर बाल दिवस 2023 के अवसर पर क्या प्रधानमंत्री मोदी ने
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीर बाल दिवस पर 26 दिसम्बर को भारत मंडपम में आयोजित हुए कार्यक्रम में कहा कि देश में आजादी के अमृतकाल में वीर बाल दिवस के रूप में एक नये अध्याय का प्रारंभ हुआ है। पिछले वर्ष 26 दिसंबर को देश ने पहली बार वीर बाल दिवस के तौर पर मनाया था. तब पूरे देश में सभी ने भाव विभोर होकर साहिबजादों की वीर कथाओं को सुना था। वीर बाल दिवस भारतीयता की रक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरने के संकल्प का प्रतीक है। ये दिन हमें याद दिलाता है कि शौर्य की पराकाष्ठा के समय कम आयु मायने नहीं रखती ।
ये भी पढ़ें– Aditya L1 latest update- क्या है हेलो ऑर्बिट जिसे माना जा रहा आदित्य L1 का सबसे कठिन फेज
2 thoughts on “वीर बाल दिवस 2023- इतिहासकारों ने वीर साहिबजादों के बलिदान को क्यों भुला दिया”