रिवर्स रेपो रेट– रिवर्स रेपो रेट, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा अपनाई जाने वाली मौद्रिक नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हाल ही में आयोजित RBI एमपीसी की 7वीं बैठक में रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में किसी प्रकार का बदलाव ना करने का फैसला लिया गया है. रिजर्व बैंक ने रिवर्स रेपो रेट 3.35% पर स्थिर रखा है जबकि रेपो रेट 6.5% पर स्थिर है.
क्या होता है रिवर्स रेपो रेट
रिवर्स रेपो रेट भारतीय अर्थव्यवस्था में एक ऐसी वित्तीय व्यवस्था है जिसमें RBI ,सरकारी प्रतिभूतियों की पुनर्खरीद की शर्त पर बैंको की अधिक तरलता के धन को जमा करता है। यहाँ ध्यान देने योग्य ये है कि RBI रिवर्स रेपो रेट पर बैंको के धन को जमा करके ब्याज देता है न कि बैंको से ऋण लेता है। इसका मुख्य उद्देश्य बैंकों के माध्यम से बाजार में कैश की उपलब्धता को आवश्यकता के अनुरूप रखकर इसके माध्यम से लिक्विडिटी को नियंत्रित करना है।
रिवर्स रेपो रेट का महत्त्व
किसी देश की अर्थव्यवस्था में रिवर्स रेपो-रेट का महत्त्व उस देश में महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सर्वाधिक है. जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में कैश की उपलब्धता अधिक हो जाती है तो RBI रिवर्स रेपो-रेट बढा देता है ताकि बैंक अधिक ब्याज कमाने के लिए रिजर्व बैंक में अधिक से अधिक मात्रा में कैश जमा करें. इस तरह बैंकों के पास बाजार में बांटने के लिए कम रकम रह जाती है क्योंकि बैंक ज्यादा से ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा देते हैं।
रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में अंतर
रेपो दर उस दर को संदर्भित करती है जिस पर वाणिज्यिक बैंक धन की कमी की स्थिति में या कुछ वैधानिक उपायों के कारण तरलता बनाए रखने के लिए हमारे देश के केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को अपनी प्रतिभूतियां बेचकर पैसा उधार लेते हैं, जबकि रिवर्स रेपो-रेट आरबीआई द्वारा निर्धारित उस दर को को कहते हैं, जिस पर देश में कार्यरत बैंक ब्याज कमाने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक में कैश जमा करते हैं.
यहाँ ध्यान देने योग्य ये है कि रेपो रेट पर रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को ऋण देता है जबकि रिवर्स रेपो रेट पर देश में कार्यरत सरकारी व गैर सरकारी बैंक रिजर्व बैंक में कैश जमा करते हैं न कि RBI को कर्ज देते हैं.
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